सूर्य और चन्द्र मिशन की सफलता के बाद इसरो ने अपना अगला कदम ब्रह्मांड के सबसे बड़े रहस्यों में से एक (ब्लैक होल) को सुलझाने की ओर कदम बढाया है. नवबर्ष की शुरूआत के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के द्वारा एक्स-रे स्रोत और ब्लैक होल के रहस्य को सुलझाने और उसके अध्यन के लिए एक्सपोसैट सैटेलाइट को लॉन्च किया गया है जो अगले पांच साल तक अंतरिक्ष में रहेगी. ब्लैक होल के अध्ययन करने का यह मिशन भारत का पहला मिशन है और दुनिया का दुसरा.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के द्वारा पीएसएलवी – सी58 के माध्यम से एक्सपोसैट सैटेलाइट को 650 किमी ऊपर पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया है . पृथ्वी की निचली कक्षा उसे कहते हैं जहां से पृथ्वी का छोर खत्म होकर अंतरिक्ष की शुरूआत होती है . एक्सपोसैट सैटेलाइट अंतरिक्ष में एक्स-रे स्रोतों की विभिन्न गतियों का अध्ययन करेगी. रॉकेट के जरिए दो पेलोड भेजे गए हैं . प्रथम पेलोड पोलिक्स एक्स-रे में खगोलीय मूल के 8-30 केवी फोटॉन के मध्यम एक्स-रे ऊर्जा रेंज में ध्रुवीकरण की डिग्री और कोण को मापेगा.
क्या होता है ब्लैक होल
आम भाषा में इसकी व्याख्या अंतरिक्ष में मौजूद एक प्रकार के छेद से करते हैं. अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार ब्लैक होल अंतरिक्ष में एक ऐसी जगह है जहां से कोई भी चीज बाहर नहीं जा सकती. यहां तक की प्रकाश भी इसके सामने से गुजर नहीं सकता. यह ऐसा स्थान है जो तारे, ग्रह, गैस, प्रकाश सभी चीजों को निगल सकता है. इसकी गुरूत्वाकर्षण शक्ति ज्यादा होने के कारण यह अपने आस-पास की चीजों कों अपनी ओर खीच लेता है. यह आकार में इतने बड़े हो सकते हैं कि अपने अन्दर सूर्य और पृथ्वी जैसे विशालकाय ग्रहों को भी समाहित कर लें.
ब्लैक होल के निर्माण की प्रक्रिया देखें तो इसकी सामान्य प्रक्रिया इस प्रकार है- ब्रह्मांड में किसी तारे का समय पूरा हो जाने के बाद वह धीरे-धीरे सिकुड़ने लगता है. इसके बाद उसमें एक सुपरनोवा विस्फोट होता है. इसके बाद तारा वहां की सभी चीजों को अपनी ओर खींचने लगता है इसी स्थिति को ब्लैक होल कहा जाता है . सर्वप्रथम वैज्ञानिकों ने 2019 में आकाशगंगा के बीच स्थित ब्लैक होल की पहली तस्वीर ली थी.
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