क्यों हो रही पुरूष आयोग की मांग, कैसे महिला सुरक्षा कानून बन रहा पुरुषों के लिए अभिशाप

प्रभात गुप्ता :

भारतीय कानून व्यवस्था में महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए उनसे से जुड़े कानून बनाए गए हैं । वर्तमान में इन कानूनों में कई बदलाव भी किए गए हैं व कठोर बनाया गया है। लेकिन जहां एक तरफ यह कानून महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है और इंसाफ दिलाने में सहायता करता है। वहीं, इन कानूनों का दुरुपयोग भी अत्यधिक होने लगा है। आजकल ऐसे मामलों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिसमें कुछ महिलाएं अपनी सुरक्षा से संबंधित कानून का इस्तेमाल गलत तरीके व बदला लेने की भावना के साथ ही प्रताड़ित करने के लिए कर रही हैं। वैवाहिक जीवन में किसी भी प्रकार के विवाद होने पर महिलाएं अपने पति पर छेड़छाड़, रेप और दहेज का आरोप लगा देती हैं। हालांकि, की हम महिलाओं की सुरक्षा की बात तो करते हैं मगर पुरुषों के बारे में बात करना भूल जाते हैं। हम महिलाओं के अधिकारों व सुरक्षा की बात करते हैं, लेकिन हम पुरुषों के अधिकारों के रक्षा की बात करना भूल जाते हैं। आखिर क्यों लगातार पुरुष आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं व हमारे समाज में सुरक्षा की दृष्टिकोण से बनाए गए कानूनों का महिलाओं के द्वारा दुरुपयोग कर हथियार के तरह इस्तेमाल कर रही हैं। और क्यों लंबे समय से पुरुषों के द्वारा पुरुष आयोग बनाने की मांग लगातार की जा रही है। आइये इसे कुछ बिन्दुओं के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं।

दिसंबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच तीन आत्महत्या के मामलों ने समाज को झकझोर दिया। बिहार के समस्तीपुर निवासी एआई इंजीनियर अतुल सुभाष ने बेंगलुरु में पत्नी और ससुरालवालों पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए 24 पन्नों का सुसाइड नोट और एक वीडियो छोड़ा । साथ ही दिल्ली के पुनीत खुराना ने 31 दिसंबर को फांसी लगा ली, पुनीत के परिवार वालों ने पत्नी पर आरोप लगाए कि उसे प्रताड़ित कर रहीं थी। इसके अलावा अहमदाबाद में वादज निवासी व्यक्ति ने पत्नी द्वारा कमरे में बंद रखने और खाना न देने से तंग आकर आत्महत्या कर ली। ये घटनाएं पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य और वैवाहिक तनाव के गंभीर मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करती हैं।

महिला सुरक्षा कानून व महिला आयोग ?

महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा को रोकने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई महत्वपूर्ण कानून बनाए गए हैं। इनमें मुख्य रूप से महिला संरक्षण अधिनियम 2005, दहेज निषेध अधिनियम 1961, महिलाओं का अभद्र चित्रण (निषेध) अधिनियम 1986, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न निषेध अधिनियम 2013, और बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 शामिल हैं। इन कानूनों का उद्देश्य महिलाओं को दहेज उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार से बचाना है। इसके साथ ही, प्रताड़ना का सामना कर रही महिलाओं को न्याय और सुरक्षा प्रदान करना भी सुनिश्चित करना है।

महिला आयोग: महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को रोकने के लिए सरकार ने महिला आयोग का गठन किया है। यह संस्था महिलाओं के खिलाफ हो रही अभद्रता के मामलों में आवाज उठाने और उनके अधिकारों की रक्षा में मदद करती है। 1990 में पारित अधिनियम के तहत 31 जनवरी 1992 को स्थापित यह एक सांविधिक निकाय है, जो शिकायतों या स्वतः संज्ञान के आधार पर महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों और कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू करती है। महिलाओं के हक और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए बनाए गए इस आयोग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि, इसके दुरुपयोग की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। कुछ मामलों में, वैवाहिक जीवन में सामान्य मतभेदों या छोटी-मोटी नोकझोंक को आधार बनाकर महिलाएं अपने पति और ससुरालवालों पर झूठे केस दर्ज कर उन्हें प्रताड़ित करती हैं। इससे न केवल निर्दोष पुरुष बल्कि उनके परिवार भी प्रभावित होते हैं।

कैसे महिलाएं कानून का सहारा लेकर पुरुषों की ले रही जान?

वर्तमान में कुछ महिलाएं धारा 498(ए) जैसे कानूनों का सहारा लेकर पुरुषों को प्रताड़ित कर रही हैं, जिससे वे आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। आधुनिक युग में, जहां महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं और समानता की वकालत कर रही हैं, वहीं कुछ महिलाएं इन कानूनों का दुरुपयोग करते हुए समाज में गंभीर समस्याएं पैदा कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में इन कानूनों के दुरुपयोग को "कानूनी आतंकवाद" करार दिया था। विशेष रूप से दहेज उत्पीड़न के मामलों में पुरुषों और उनके परिवारों को झूठे मुकदमों में फंसाने की धमकी दी जाती है। जब पति-पत्नी के बीच विवाद होता है और उनकी दूरियां बढ़ने लगती हैं, तब कुछ महिलाएं अपने ससुराल वालों को सबक सिखाने के लिए कानून को हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। वे पति, सास, ससुर, देवर, ननद आदि सभी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवा देती हैं। आईपीसी की धारा 498(ए) से जुड़े दहेज उत्पीड़न के मामलों में कई महिलाएं ससुराल वालों से गुजारा भत्ता के नाम पर बड़ी रकम की मांग करती हैं। इसके साथ ही, उन्हें कई अन्य तरीकों से भी प्रताड़ित किया जाता है। ऐसे मामलों में, जहां कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं, उनका गलत इस्तेमाल समाज में असंतुलन पैदा कर रहा है। इससे निर्दोष परिवारों पर भारी मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक दबाव बढ़ रहा है। इस स्थिति से परेशान होकर कई लोग आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं।

पुरुष आयोग व पुरुष सुरक्षा की उठ रही मांग ?

पिछले कुछ वर्षों में भारत में राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन की मांग तेजी से बढ़ी है। हाल ही में पत्नी से प्रताड़ित होकर आत्महत्या के कुछ मामलों के सामने आने के बाद, यह मांग और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। लंबे समय से पुरुषों की ओर से इस आयोग की आवश्यकता को उठाया जा रहा है, खासकर उन संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा जो पुरुष अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं या जो महिलाओं और उनके परिवारों द्वारा किए गए उत्पीड़न का शिकार हैं। समस्तीपुर के अतुल सुभाष द्वारा आत्महत्या की घटना के बाद, राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन और महिलाओं द्वारा कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाने की मांग और तेज हो गई है। इसके साथ ही, इन कानूनों के तहत मामलों का निपटारा करते समय न्यायपालिका से दाखिल याचिकाओं में पारदर्शिता बरतने की अपील की जा रही है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कानूनों का दुरुपयोग न हो।

क्यों नहीं हैं देश में पुरुष प्रताड़ना के विरुद्ध कानून ?

भारत में पुरुषों के खिलाफ उत्पीड़न से संबंधित कोई कानून न होना एक जटिल समस्या है, जिसके पीछे सामाजिक, कानूनी और ऐतिहासिक कारण हैं। हालांकि, भारतीय न्याय व्यवस्था में पुरुषों की सुरक्षा और प्रताड़ना के लिए कुछ प्रावधान मौजूद हैं। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाओं को मिले विशेष कानूनों की तुलना में इन प्रावधानों की कोई खास अहमियत नहीं है। हमारे समाज में महिलाओं को हमेशा पुरुषों की तुलना में कमजोर और उत्पीड़ित माना गया है। इसी कारण कुछ विशेष कानून महिलाओं के लिए बनाए गए थे, जो अब पुरुषों के लिए समस्याएं पैदा कर रहे हैं। वहीं, पुरुषों के लिए कोई विशेष कानून नहीं है, जो उनके साथ होने वाले उत्पीड़न जैसे झूठे आरोप, भावनात्मक शोषण, और बच्चों की कस्टडी से संबंधित मुद्दों को संबोधित कर सके।

महिलाओं के अपेक्षा पुरुष आत्महत्या की संख्या ज्यादा

जहां तक पत्नियों द्वारा प्रताड़ना के कारण पतियों की आत्महत्या के मामलों का सवाल है, इस विषय पर विस्तृत सरकारी आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, गुरुग्राम स्थित 'एकम न्याय फाउंडेशन' की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में पत्नियों या महिला साथियों द्वारा पतियों की हत्या के 306 मामले दर्ज किए गए। इनमें से 213 मामलों में हत्या पतियों की पत्नियों और उनके प्रेमियों द्वारा की गई थी। इसके अलावा, 2022 में 1,22,724 पुरुषों द्वारा की गई आत्महत्याओं में से 82,000 पुरुष विवाहित थे। पुरुषों की आत्महत्याओं के सबसे आम कारणों में पारिवारिक समस्याएं (38,904 मामले) और विवाह संबंधी समस्याएं (5,891 मामले) शामिल हैं। ये आंकड़े समाज में व्याप्त गंभीर समस्याओं की ओर इशारा करते हैं, जो पुरुषों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। वहीं लगातार इस प्रकार के मामलों में बढ़ोतरी होती जा रही है। साथ पुरुषों के आत्महत्या के लिए मजबूर करने के मामलों में महिलाओं के विरुद्ध किसी प्रकार की काई कार्रवाई का नहीं होना भारतीय न्याय प्रणाली के ऊपर कई सवाल खड़े करता है। जो इसकी सत्यनिष्ठा पर भी सवाल खड़ा करता है।

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